बेकार अग्निशमन यंत्रों के भरोसे विद्यालय

समस्तीपुर : सरकारी स्कूलों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेक उपाय किये जा रहे हैं. लेकिन विद्यार्थियों की सुरक्षा को लेकर विभाग द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नही की गई है. ऐसे में एक छोटी सी चिनगारी भी विद्यार्थियों की जान को खतरे में डाल सकता है. जिले के अधिकांश स्कूलों व कालेजों में अग्निशमन यंत्र नहीं लगे हैं, जबकि भवन की सुरक्षा के लिए अग्नि सुरक्षा मापदंडों का पालन जरूरी है. नियमानुकूल सभी सार्वजनिक संस्थानों व बहुमंजिला निजी भवनों में भी अग्निशमन यंत्र का होना जरूरी है लेकिन जिले में ऐसा नहीं है. अग्निसुरक्षा यंत्र जहां लगे भी है वह बेकार हो गये हैं. यदि किसी कारणवश संस्थानों में आग लग जाये तो बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है. जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग की नाक तले स्कूल व कॉलेजों के प्रबंधक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. प्राथमिक विद्यालयों से लेकर डिग्री कॉलजों में अग्नि सुरक्षा को लेकर बेहतर इंतजाम नहीं है. कई संस्थानों में तो केवल दिखावे के लिए अग्निशमन यंत्र लगाये गये हैं. वर्षों से उसका रिफिलिंग भी नहीं करायी गयी है. डिग्री कॉलेजों व दो मंजिल से अधिक स्कूल के भवनों में फायर कंट्रोल रूम का भी निर्माण किये जाने का प्रावधान है, लेकिन यहां पर वह सुविधा नहीं है. संसाधनों के अभाव में स्कूल व कॉलेजों में अध्यनरत बच्चों की जान खतरे में पड़ सकती है. जिले के अधिकांश सरकारी या प्राइवेट स्कूलों में अग्निशमन यंत्र की उपलब्धता नहीं हैं. अग्निशमन विभाग ने इसे गंभीर मामला मानते हुए शिक्षा विभाग के डीईओ को पत्र लिखा है और अविलंब स्कूलों में यह व्यवस्था कराने की अपील की है, ताकि अगलगी की बढ़ रही घटनाओं के मद्देनजर स्कूलों को सुरक्षित किया जा सके. उन्होंने आशंका जाहिर की है कि स्कूलों के संचालन के दौरान यदि अगलगी की घटनाएं हो जाती हैं तो प्राथमिक बचाव के लिए अग्निशमन यंत्र नहीं होने से बड़े हादसे होने की संभावना बढ़ जाती है. अपने सर्वेक्षण में अग्निशमन विभाग ने पाया है कि अधिकतर स्कूलों में यह सुविधा नहीं है. महज 25 फीसदी के पास ही अग्निशमन यंत्र है. यह भी कई सालों से पड़ा हुआ है. इसकी रिफिलिंग भी नहीं करायी गयी है. वहीं प्राइवेट स्कूलों में से महज 60 फीसदी के पास ही यह सुविधा है. शेष के पास अग्निशमन की कोई सुविधा नहीं है. सरकारी स्कूलों की हालत यह है कि उनमें एंटीसेप्टिक तक नहीं है, जिससे चोट लगने या खून निकलने पर बच्चों को एंटीसेप्टिक लगाकर पट्टी बांधी जा सके. कई स्कूल तो ऐसे हैं जहां पर फर्स्ट एड बॉक्स को सालों से नहीं खोला गया है. इसे अनिवार्य श्रेणी में रखा गया है जबकि अधिकांश प्राइवेट स्कूलों में फर्स्ट एड बॉक्स उपलब्ध है. जिम्मेदार भी निरीक्षण के दौरान इस ओर ध्यान नहीं देते हैं.

::::::::::::::::स्कूलों को विद्यालय मद से एक्सपायर हुए अग्निशमन यंत्र की रिफिलिंग करानी है. अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो यह गलत है. इस संबंध में स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को पत्र दिया जायेगा. स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है. इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जायेगी.

मदन राय, डीईओ, समस्तीपुर.

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