महामाया की शरण ही है माया से मुक्ति : आचार्य योगेश

समस्तीपुर : महामाया की शरण ही है माया से मुक्ति. संसार का सबसे कठिन कार्य भागवत भजन, सत्यसंग करना और सुनना है. भागवतीय कार्य में मन लग जायें तो समझों बड़ी कृपा है. कथा व्यास आचार्य योगेश प्रभाकर महाराज ने श्रीमद् देवी भागवत कथा सुनाते हुए यह मूल मंत्र कहा. वे पांचवें दिन बुधवार की देर शाम व्यास पीठ से कथा सुना रहे थे. मऊ शिव मंदिर के समीप श्री शत चंडी महायज्ञ सह प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित कथा सत्र में पराम्बा के मातृ चरित्र पर चर्चा करते हुए कहा कि भजन का परिणाम भोग नहीं, भगवान हैं. सिद्धि के लिए साधना की आवश्यकता पड़ती है. चित को परिवर्तन के लिए कथा होना चाहिए. पराम्बा की विशेष कृपा होने के बाद ही उनके दिव्य तत्व को समझा जा सकता है. पराम्बा चरित्र श्रवण करने को मिल जायें तो जीवन सफल हो जाता है. यह अत्यंत दुर्लभ है. उन्होंने कहा कि भावना में भाव होता है. वहीं ज्ञान संसार सागर से पार लगा देता है. हर सुख के पीछे दुःख छुपा हुआ है. योगेश प्रभाकर ने पराम्बा श्री जगदम्बा जी के पवित्र आख्यानों से युक्त इस पुराण में वर्णित श्लोकों की सुरम्य प्रस्तुति के बीच अपनी संगीतमय भजनों हां मैं हूं अपराधी पर तुम दयामयी हो मां, हमारो धन राधा श्रीराधा, अब सौंप दिया इस जीवन के भार तुम्हारे हाथों में, मां कृपा करो…आदि की प्रस्तुति से उपस्थित जनसमूह भक्ति भाव के सागर में गोते लगाते रहे. वहीं मऊ बाजार स्थित पुरानी दुर्गा मंदिर में स्थापित माता के अद्भुत विग्रह का प्राण-प्रतिष्ठा पूरे भक्ति भाव के साथ संपन्न हुआ. इसको लेकर कन्याओं ने कलश यात्रा निकाली. श्री शत चंडी महायज्ञ सह प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में सातवें दिन प्रधान आचार्य श्री गोविंदाचार्य महाराज के निर्देशन में आचार्य अभिषेक मिश्रा, आचार्य गोपाल मिश्रा आदि दर्जन भर पुरोहितों ने अधिवास के प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न करायी.

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