औषधीय पौधाें की खेती कर किसानों के लिए नजीर पेश कर रहे ई.फुलेंद्र

समस्तीपुर : विभिन्न प्रकार की औषधि के रूप में सतावर, कस्तूरी भिंडी, मूषकदाना, पिपरमेंट, पिपली, सर्पगंधा, अश्वगंधा, आमादि, लेमनग्रास, घृतकुमारी आदि की खेती कर चुके रोसड़ा ढाव मोहल्ला निवासी इं. फुलेंद्र कुमार सिंह आंसू किसानों के लिए नजीर बन गये हैं. वर्तमान में वे निकटवर्ती जिले के बारा गांव स्थित पच्चीस एकड़ में फैले अपने सत्यपाल कृषि फार्म के डेढ बीघा भूमि पर कालमेघ (चिरैता) की खेती कर किसानों को एक अलग संदेश दिया है. इसी फॉर्म में वे तोड़ी, गेहूं, गन्ना, आलू, प्याज की खेती के अलावा पपीता, बेल, कटहल, अमरुद एवं आम का वृक्षारोपण कर आने वाले भविष्य की चिंता की है. सफल किसान श्री सिंह गत पंद्रह वर्षों से लगातार कालमेघ की खेती कर रहे हैं. कालमेघ को लोग ब्लड प्यूरिफाई करने, जौंडिस, चर्मरोग एवं धात मजबूत करने के लिए औषधि के रूप में सेवन करते हैं. इसलिए आयुर्वेद में इसका काफी महत्व है. किसान अगर इस औषधीय पौधे की खेती करें तो उनके जीविका का अच्छा साधन बन सकता है. साथ ही लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी मिलेगा. श्री सिंह ने बताया कि वर्तमान में 28 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से मंडी में कालमेघ का भाव है. वे पटना सिटी या बनारस के दीनानाथ का गोला स्थित औषधीय पौधों का मेन मंडी में अपनी उपज को भेजने की तैयारी कर रहे हैं. कालमेघ की खेती के बारे में उन्होंने बताया कि पहला खेती वर्ष 2010-11 में छह बीघा भूमि में किया था. उस समय चार से पांच हजार रुपए प्रति क्विंटल की दर से मंडी में भाव था. वर्ष 2014 में 18 सौ, 2016 में 25 सौ एवं 2017-18 में 28 सौ रुपए प्रति क्विंटल बेचा गया. वर्तमान समय में इस औषधीय पौधे की खेती में सब्सिडी नहीं मिलने से मुनाफा कम हो रहा है. कहा कि केंद्र सरकार अगर पूर्व की तरह सब्सिडी देकर इस खेती को बढ़ावा दे तो औषधीय खेती से किसानों को काफी फायदा मिलेगा.खेती को बताया आसानकिसान ने कालमेघ की खेती करना काफी आसान बताया है. एक किलोग्राम बीज से डेढ़ बीघा में फसल की बुवाई हो जाती है. जिसमें करीब नौ क्विंटल कालमेघ की उपज तैयार होती है. यह खेती चार महीने की होती है. 25 से 30 मई तक नर्सरी में बिचड़ा से पौधा तैयार कर 25 जून से 7 जुलाई तक इसकी रोपाई कर दी जाती है. अक्टूबर के अंत तक इसकी कटाई की जाती है. ताकि आगामी रबी फसल गेहूं की बुवाई हो सके. बताया कि कालमेघ का स्वाद करुआ होने के कारण खेतों को कोई भी जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते. खेतों में कीड़े भी नहीं लगते हैं. किसान अगर इसके उत्पादन और विपणन से संबंधित कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी प्राप्त कर खेती करें तो हर दृष्टिकोण से यह रामबाण साबित होगा.

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