समस्तीपुर : जिले में गुरुवार से भाई-बहन के प्यार और उनके अटूट रिश्ते को दर्शाने का पर्व सामा-चकेवा प्रारंभ हो गया. इस पर्व के बारे में ऐसा मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा और उनके बेटे का नाम चकेवा था. सामा वृंदावन के जंगल में खेलने जाती थी. एक दिन चुगला नामक व्यक्ति ने झूठ बोलकर भगवान श्रीकृष्ण को बताया कि सामा किसी साधु से मिलने जाती है. इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया. सामा के पति चक्रवाक भी स्वेच्छा से पक्षी बनकर सामा के साथ भटकने लगे. सामा के भाई चकेवा को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत दु:खी हुए. उन्होंने अपनी बहन सामा और बहनोई चारुवक्र को वापस मानव रूप में लाने की प्रतिज्ञा की. चकेवा ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की. भगवान श्रीकृष्ण ने चकेवा की तपस्या से प्रसन्न होकर सामा को श्राप से मुक्त कर दिया. इस घटना के बाद से हर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के सप्तमी से सामा-चकेवा का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता है. वारिसनगर : सामा-चकेवा निर्माण कर्ता मदन पंडित ने बताया कि यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा रात तक मनाया जाता है. मदन पंडित एवं अशोक पंडित ने बताया कि हमलोगों के यहां सामा चकेवा 50 रुपये से लेकर 150 रुपये तक बिक रहा है जो इस दौर के लिए बहुत कम कीमत है. मूर्तिकार ने बताया कि जितना मेहनत और पूंजी सामा-चकेवा में लगता है वो किसी प्रकार वापस मिल जाता है.